ब्रज-भाषा
1950 के अकाल नै रमेश चन्द के पिता कूँ पूरी तरह ते परेसान कर दियौ। धौलपुर जिला के जादा आदमी पूरी तरैहते खेती पै निर्भर हैं। और जा 1950 के अकाल नै तौ बिन लोगन पै भौत बड़ी विपत्ती ड़ार दई। और बिनकी मदद-सहायता करबे के काजै जब ब्रितानी मिशनरी आये तौ बिन्नै बिन लोगन कूँ खाबे कूँ रोटी और पहरबे कूँ कपड़े और रहवे कूँ घर दिवायौ। तौ बिनके जा प्रेम और सेवा के कामें देखकैं भौतसे लोग ईसू मसीह के झौंरे आये। और कछु लोग अपनी रीति-रीवाजन्ने निभावे के मारैं मसीह के भरौसे मेंते पीछैं चले गये। पर रमेश के पिता नें अपनौ भरौसौ अन्त समै तक मसीह में बनायौ राखौ, जब तक कि बू सुरग में नाय चले गयौ। रमेश नेऊ अपने पिता के मसीह में पक्के भरौसे देख कैं अपने प्रदेश में मसीह के सुसमाचारै सुनाबे के म्हारैं भौत सताव झेले। सताव और परेसानी झेलवे के बादऊ रमेश अबऊ एक पक्कौ मसीह है। इन सब विरोदन के बादऊ रमेश और बाके संग में तीन घर औरैं जो मसीह के भरोसे में आगें बढ़ते रहे। और वे अपने माता-पिता के पक्के भरोसे पै खड़े रहवे के काजैं वे भौतई उत्साहित भये हते। और बाके बाद में 1970 और 1990 के बीच में भौतसे लोग मसीह के भरौसे में आये, और भौत से मसीह इसकूलऊ खोले गये हतै। और बा समै के बाद में भौत से बदलाव भये हते। पर जिन सबनते पहलें एक कैंथोलिक पादरी आए, कछु बैपटीस्ट मिशनरी आये, और कछु प्रोटेस्टेंट मिशनरी एक के बाद एक आये हते। पर वे सबरे लोग अपने कामन के विरूद्ध आए, और बिन पै सताव भयौ तौ बे बा सताबै झेल ना पाये या मारैं वे उल्टे लौट गये। बिरज भूमि उत्तर-प्रदेश और पूर्वी राजस्थान कौ बू इलाकौए ज्हांपै बिरज भासा बोली जावै। और यहाँपै भौत से लोक समुदायैं जैंसे- माली, धोबी, चमार, कोली, गूजर, कंजर और मीना जे सबरे लोग बिरज भासा बोलें। जिन सब लोगन में कंजर समुदाय के लोग मसीह के वचन के सुनवे के काजै भौतई पीछैं रह गयैंए। और यहाँपै जादातर हिन्दू और मुसलमान बिरज भासा बोलें। और बिरज भासा बोलवे बारेन में 0.01 % तेऊ कम मसीह लोग हैं। वर्तमान के एक आँकड़े ते जि पतौ चलै कि जा इलाके में खाली दसई कलीसियाऐं। कछु कारण के रहत भये मसीहत कूँ आजऊ एक विदेशी धर्म के रूप में मानौ जाबै हते, और जो कोई मसीह में आबे तौ बायै समुदाय के लोग बिनते नफरत करें और बिन्ने कलंकी मानौ जाबै। और यहाँपै जाऊ बात चलन जादातर चल रहौए, कि भौतसे लोग मसीह में आ तौ जामें पर सरल तरैह ते वापिसऊ लौट जायैं। 14 वीं शताब्दी तेऊ पहलें ब्रज में भौत सारौ साहित्य लिखौ गयौए। सूरदास और तुलसीदास के संग में हिन्दू संतन ने अपने देवतान के काजैं आराधना और भक्ति कौ मनन करवे के बारे में लिखौए। जहाँ तक कि रविनदरनाथ टैगौर नै भानुसिम्हा थकूरेर पडाबली की शिर्षित कवीता, मूल रूप ते बिना नाम के आदमी के जैसें लिखी। जीऊ कहौ जाबे कै बिरज भासा, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत संयौजन की एक जरूरी भाषा है। जी ध्यान रखौ जा सकै कि धारमिक साहित्यै छोड़कैं और दूसरौ साहित्य जादा नाए हती। का जी समैएं कि मसीह कौ संदेश बिरज भासा में लिखौ जाबै?
जनसंख्या:574,245 (2001 की गणना के अनुसार, राजस्थान में)
साक्षरता: 50%